Atal Bihari Vajpayee Poems: લિખતા હું, મિટાતા હું, ગીત નહીં ગાતા હું, અટલજીના જન્મદિવસ પર તેમની દસ સુંદર કવિતા

અટલ બિહારી વાજપેયીની જન્મજયંતિ 25 ડિસેમ્બરે છે. ગ્વાલિયરમાં 1924માં જન્મેલા અટલ બિહારી વાજપેયી એક રાજકારણી હતા જેમણે ત્રણ વખત દેશના વડાપ્રધાન પદ સંભાળ્યું હતું. અટલ બિહારી વાજપેયીની જન્મજયંતિ પર, તેમની 10 સુંદર કવિતાઓ વાંચો જેમાં જીવનનો સાર છે.

Atal Bihari Vajpayee Poems: લિખતા હું, મિટાતા હું, ગીત નહીં ગાતા હું, અટલજીના જન્મદિવસ પર તેમની દસ સુંદર કવિતા
Atal Bihari Vajpayee
| Edited By: | Updated on: Dec 25, 2023 | 1:56 PM

Atal Bihari Vajpayee Birthday: આજે 25મી ડિસેમ્બરે દેશના પૂર્વ વડાપ્રધાન અને ભારત રત્ન અટલ બિહારી વાજપેયીની જન્મજયંતિ છે. ગ્વાલિયરમાં 1924માં જન્મેલા અટલ બિહારી વાજપેયી એક રાજકારણી હતા જેમણે ત્રણ વખત દેશના વડાપ્રધાન પદ સંભાળ્યું હતું. અટલ બિહારી વાજપેયી ભલે રાજકારણ સાથે જોડાયેલા હોય, પરંતુ તેમની અંદર એક વાસ્તવિક કવિ વસે છે. તેમની ઘણી રચનાઓ કવિતાઓ વાંચનારા અને સાંભળનારાઓના હૃદય અને મગજમાં પ્રવેશ કરે છે. हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पर लिखता हूं, मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं..

અટલ બિહારી વાજપેયીનું વ્યક્તિત્વ એવું હતું કે માત્ર સમાન વિચારધારા ધરાવતા લોકો જ નહીં પરંતુ તેમના વિરોધીઓ પણ તેમના ભાષણો સાંભળવાનું પસંદ કરતા હતા.શબ્દોથી જાદુ સર્જનારા અટલજીએ ઘણા આંતરરાષ્ટ્રીય મંચો પર પણ દુનિયાને સંબોધિત કરી હતી. ગૃહ હોય કે કોઈ રાજકીય ક્ષેત્ર, અટલ જી, હંમેશા અટલની જેમ અડગ રહો. 1998માં પોખરણ પરમાણુ પરિક્ષણ તેમની વિચારસરણીનું પ્રતિબિંબ હતું – ભારત વિશ્વની કોઈપણ શક્તિ સમક્ષ આત્મસમર્પણ કરવા તૈયાર નથી.

ગ્વાલિયરમાં 25 ડિસેમ્બર, 1924ના રોજ જન્મેલા અટલ બિહારી વાજપેયીએ ત્રણ વખત દેશના વડાપ્રધાન પદ સંભાળ્યું હતું. વાજપેયીને વર્ષ 2015માં દેશના સર્વોચ્ચ સન્માન ભારત રત્નથી નવાજવામાં આવ્યા હતા. રાજકારણી હોવા ઉપરાંત તેઓ અત્યંત સંવેદનશીલ કવિ પણ હતા. તેમના કાવ્ય સંગ્રહમાંથી 10 સુંદર કવિતાઓ વાંચવા માટે આગળ વાંચો જે આપણને જીવનમાં મુશ્કેલીઓનો સામનો કરવાનું પણ શીખવે છે.

मौत से ठन गई

1. ठन गई!
मौत से ठन गई!

जूझने का मेरा इरादा न था,

मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,

यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,

ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,

लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?

तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,

सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।

मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,

शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,

दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,

न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,

आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,

नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है।

पार पाने का क़ायम मगर हौसला,

देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई।

मौत से ठन गई।

2.मैंने जन्म नहीं मांगा था!

मैंने जन्म नहीं मांगा था,

किन्तु मरण की मांग करुँगा।

जाने कितनी बार जिया हूँ,

जाने कितनी बार मरा हूँ।

जन्म मरण के फेरे से मैं,

इतना पहले नहीं डरा हूँ।

अन्तहीन अंधियार ज्योति की,

कब तक और तलाश करूँगा।

मैंने जन्म नहीं माँगा था,

किन्तु मरण की मांग करूँगा।

बचपन, यौवन और बुढ़ापा,

कुछ दशकों में ख़त्म कहानी।

फिर-फिर जीना, फिर-फिर मरना,

यह मजबूरी या मनमानी?

पूर्व जन्म के पूर्व बसी—

दुनिया का द्वारचार करूँगा।

मैंने जन्म नहीं मांगा था,

किन्तु मरण की मांग करूँगा।

3. मैं न चुप हूँ न गाता हूँ

सवेरा है मगर पूरब दिशा में

घिर रहे बादल

रूई से धुंधलके में

मील के पत्थर पड़े घायल

ठिठके पाँव

ओझल गाँव

जड़ता है न गतिमयता

स्वयं को दूसरों की दृष्टि से

मैं देख पाता हूं

न मैं चुप हूँ न गाता हूँ

समय की सदर साँसों ने

चिनारों को झुलस डाला,

मगर हिमपात को देती

चुनौती एक दुर्ममाला,

बिखरे नीड़,

विहँसे चीड़,

आँसू हैं न मुस्कानें,

हिमानी झील के तट पर

अकेला गुनगुनाता हूँ।

न मैं चुप हूँ न गाता हूँ

4. क़दम मिला कर चलना होगा
क़दम मिला कर चलना होगा

बाधाएँ आती हैं आएँ

घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,

पावों के नीचे अंगारे,

सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,

निज हाथों में हँसते-हँसते,

आग लगाकर जलना होगा।

क़दम मिलाकर चलना होगा।

हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,

अगर असंख्यक बलिदानों में,

उद्यानों में, वीरानों में,

अपमानों में, सम्मानों में,

उन्नत मस्तक, उभरा सीना,

पीड़ाओं में पलना होगा।

क़दम मिलाकर चलना होगा।

उजियारे में, अंधकार में,

कल कहार में, बीच धार में,

घोर घृणा में, पूत प्यार में,

क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,

जीवन के शत-शत आकर्षक,

अरमानों को ढलना होगा।

क़दम मिलाकर चलना होगा।

सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,

प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,

सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,

असफल, सफल समान मनोरथ,

सब कुछ देकर कुछ न मांगते,

पावस बनकर ढलना होगा।

क़दम मिलाकर चलना होगा।

कुछ काँटों से सज्जित जीवन,

प्रखर प्यार से वंचित यौवन,

नीरवता से मुखरित मधुबन,

परहित अर्पित अपना तन-मन,

जीवन को शत-शत आहुति में,

जलना होगा, गलना होगा।

क़दम मिलाकर चलना होगा।

5-आओ फिर से दिया जलाएँ
आओ फिर से दिया जलाएँ

भरी दुपहरी में अँधियारा

सूरज परछाई से हारा

अंतरतम का नेह निचोड़ें-

बुझी हुई बाती सुलगाएँ।

आओ फिर से दिया जलाएँ

हम पड़ाव को समझे मंज़िल

लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल

वर्त्तमान के मोहजाल में-

आने वाला कल न भुलाएँ।

आओ फिर से दिया जलाएँ।

आहुति बाकी यज्ञ अधूरा

अपनों के विघ्नों ने घेरा

अंतिम जय का वज़्र बनाने-

नव दधीचि हड्डियाँ गलाएँ।

आओ फिर से दिया जलाएँ

6. कौरव कौन, कौन पांडव
कौरव कौन

कौन पांडव,

टेढ़ा सवाल है|

दोनों ओर शकुनि

का फैला

कूटजाल है|

धर्मराज ने छोड़ी नहीं

जुए की लत है|

हर पंचायत में

पांचाली

अपमानित है|

बिना कृष्ण के

आज

महाभारत होना है,

कोई राजा बने,

रंक को तो रोना है

7- पुनः चमकेगा दिनकर

आज़ादी का दिन मना,

नई ग़ुलामी बीच;

सूखी धरती, सूना अंबर,

मन-आंगन में कीच;

मन-आंगम में कीच,

कमल सारे मुरझाए;

एक-एक कर बुझे दीप,

अंधियारे छाए;

कह क़ैदी कबिराय

न अपना छोटा जी कर;

चीर निशा का वक्ष

पुनः चमकेगा दिनकर।

8 दूध में दरार पड़ गई

ख़ून क्यों सफ़ेद हो गया?

भेद में अभेद खो गया।

बँट गये शहीद, गीत कट गए,

कलेजे में कटार दड़ गई।

दूध में दरार पड़ गई।

खेतों में बारूदी गंध,

टूट गये नानक के छंद

सतलुज सहम उठी, व्यथित सी बितस्ता है।

वसंत से बहार झड़ गई

दूध में दरार पड़ गई।

अपनी ही छाया से बैर,

गले लगने लगे हैं ग़ैर,

ख़ुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता।

बात बनाएँ, बिगड़ गई।

दूध में दरार पड़ गई।

9- कर्तव्य के पुनीत पथ को

हमने स्वेद से सींचा है,

कभी-कभी अपने अश्रु और—

प्राणों का अर्ध्य भी दिया है।

किंतु, अपनी ध्येय-यात्रा में—

हम कभी रुके नहीं हैं।

किसी चुनौती के सम्मुख

कभी झुके नहीं हैं।

आज,

जब कि राष्ट्र-जीवन की

समस्त निधियाँ,

दाँव पर लगी हैं,

और,

एक घनीभूत अंधेरा—

हमारे जीवन के

सारे आलोक को

निगल लेना चाहता है;

हमें ध्येय के लिए

जीने, जूझने और

आवश्यकता पड़ने पर—

मरने के संकल्प को दोहराना है।

आग्नेय परीक्षा की

इस घड़ी में—

आइए, अर्जुन की तरह

उद्घोष करें :

‘‘न दैन्यं न पलायनम्।’’

10 पहली अनुभूति:

गीत नहीं गाता हूँ

बेनक़ाब चेहरे हैं,

दाग़ बड़े गहरे हैं

टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूँ

गीत नहीं गाता हूँ

लगी कुछ ऐसी नज़र

बिखरा शीशे सा शहर

अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूँ

गीत नहीं गाता हूँ

पीठ मे छुरी सा चांद

राहू गया रेखा फांद

मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूँ

गीत नहीं गाता हूँ

दूसरी अनुभूति

गीत नया गाता हूँ

टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर

पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर

झरे सब पीले पात

कोयल की कुहुक रात

प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूँ

गीत नया गाता हूँ

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी

अन्तर की चीर व्यथा पलको पर ठिठकी

हार नहीं मानूँगा,

रार नई ठानूँगा,

काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूँ

गीत नया गाता हूँ

Published On - 11:35 am, Mon, 25 December 23